अगर, अगुरु एक दिव्य औषधि: पहचान, प्राप्ति स्थान, गुण और आयुर्वेदिक उपयोग | कुष्ठ व खुजली की रामबाण दवा

Sachinta maharaj

अगर ( अगुरु ) एक दिव्य औषधि: अद्भुत गुण, पहचान, प्राप्ति स्थान और आयुर्वेदिक उपयोग

आयुर्वेद में हर जड़ी-बूटी और औषधि का विशेष महत्व है। कुछ औषधियाँ ऐसी होती हैं जिन्हें "दिव्य औषधि" कहा जाता है। ये न केवल साधारण रोगों में बल्कि कुष्ठ, खुजली जैसी गंभीर बीमारियों में भी रामबाण की तरह कार्य करती हैं।


🌿 अगर दिव्य औषधि के नाम 

  • हिन्दी अगर 
  • संस्कृत अगुरु, वशिक, कृमिजम

📍 प्राप्ति स्थान

  • हिमालयी क्षेत्रों की पर्वतीय घाटियों में।
  • उत्तर भारत के वन प्रदेशों में।
  • अगर के वृक्ष सिलहट, मणिपुर, मलयालम, स्त्रावर आदि के जंगल पाई जाती हैं। 

✨ अद्भुत गुण

  • इसकी राल से सुगन्ध आतीं हैं। जिसका उपयोग अगरबत्ती ओर इत्र आदि किया जाता हैं।
  • यह 60 से 100 फिट ऊंचा सघन वृक्ष होता है। हरा भरा व इसकी लकड़ी नरम होती हैं। इसके कटने से डाल ओर तने राल आती हैं जोकि सुगन्ध होती हैं।
  • अगर की पांच जाति पाई जाती है इन्हे कृष्णागुरु, काष्ठागुरु, दाहागुरु, स्वाहगुरु, एवं मंगलागुरु कहते हैं। 
  • कृष्णागुरु सिहलट के जंगल के पाया जाता है इनमें यह सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है। यह पानी में डूब जाती है। चबाने पर मुलायम कड़वा लगता है और जलाने पर सुगंध आती है।
  • कुष्ठ (Leprosy) और खुजली जैसी त्वचा संबंधी बीमारियों को दूर करने वाली।
  • खून को शुद्ध करने वाली।
  • शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाली।
  • सूजन, जलन और संक्रमण को समाप्त करने वाली।
  • पाचन शक्ति को सुधारने और भूख बढ़ाने में सहायक।

🩺 आयुर्वेदिक उपयोग

  1. कुष्ठ एवं खुजली में – औषधि का लेप या काढ़ा उपयोग किया जाता है।
  2. रक्तशुद्धि में – चूर्ण या रस का सेवन किया जाता है।
  3. ज्वर एवं बुखार में – काढ़ा रूप में सेवन लाभकारी।
  4. पाचन विकार में – पाउडर या टेबलेट स्वरूप में सेवन।
  5. शरीर को बल और ऊर्जा देने में – टॉनिक की तरह उपयोग।

🌟 विशेष गुण

  • इसकी लकड़ी या छाल को काली माँ के सामने रखकर उसकी पूजा करने के बाद पीसकर शरीर पर लगाने से दिव्या क्रांति प्राप्त होती है।
  • मां काली की मूर्ति की पूजा करके इसका खोवा पान में लगाकर खाने से अति कामुक होता है इसका प्रयोग बजीकरण में भी किया जाता है।
  • बहुमूल्य और दुर्लभ आयुर्वेदिक औषधि।
  • हृदय रोग में इसकी लकड़ी का चूर्ण घिसकर शहद में मिलकर आशातीत लाभ होता है 
  • प्राकृतिक रूप से उपलब्ध और बिना किसी दुष्प्रभाव के।
  • आधुनिक चिकित्सा के साथ सहायक के रूप में भी काम करती है।

👉 निष्कर्ष: दिव्य औषधि आयुर्वेद का अमूल्य खजाना है। यह न केवल कुष्ठ और खुजली जैसी त्वचा रोगों में कारगर है, बल्कि शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी मजबूत बनाती है। यदि सही पहचान और विधि से इसका उपयोग किया जाए, तो यह रामबाण औषधि सिद्ध हो सकती है।


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