🌿 अरण्य तुलसी (वन तुलसी) के अद्भुत औषधीय गुण और उपयोग
🔹 परिचय
अरण्य तुलसी जिसे वन तुलसी, बर्बरी, अर्जक, बाबू तुलसी आदि नामों से जाना जाता है, एक अत्यंत उपयोगी औषधीय पौधा है। यह पौधा विशेष रूप से एशिया और सिंध क्षेत्र में पाया जाता है। भारत, नेपाल, बंगाल, चटगांव और पूर्वी नेपाल में भी इसकी व्यापकता देखी जाती है।
🌱 स्थानीय नाम
- हिन्दी: बर्बरी, वन तुलसी
- संस्कृत: अर्जक, बर्बरी, वनबर्बरी
- बंगाली: बाबू तुलसी, वनबाबू
- मराठी: रान तुलस
- गुजराती: रान तुलसी भेद
- कन्नड़: कागोरेल, करियक गोरेल
- तेलुगु: कार तुलसी
- फ़ारसी: पलंगमुरक
- अरबी: फरंजमुस्का
🌿 पौधे की पहचान
अरण्य तुलसी का पौधा सीधा और शाखाओं वाला होता है। इसकी छाल राख के रंग की होती है। यह पौधा लगभग 4 से 8 फीट तक ऊँचा होता है। इसके पत्ते दोनो बाजुओं पर फैले रहते हैं जिनकी लंबाई 2 से 4 इंच तक होती है। पौधा सालभर हरा-भरा रहता है।
🌼 अरण्य तुलसी के गुण
🔸 आयुर्वेद अनुसार:
अरण्य तुलसी चरपरी, रुचिकारक, गर्म और वात-कफ नाशक है। यह हृदय के लिए हितकारी, दीपक, पाचन में सहायक, और वमन, मूर्च्छा, वात, कफ, पथरी आदि रोगों में लाभदायक है।
यह पौधा स्वाद में तिक्त, रूखी, शीतल, दाहनाशक, तीक्ष्ण और पाचक होता है।
🔸 यूनानी मत के अनुसार:
यह पौधा पेट और आंखों के रोगों में अत्यंत लाभकारी है।
यह हृदय रोग, शूकर (syphilis), तिल्ली, दांतों के मसूड़ों और आंतों के दर्द व बवासीर** में उपयोगी माना जाता है।
💧 औषधीय उपयोग
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वीर्य-संबंधी रोगों में लाभकारी:
इसके पत्तों का काढ़ा पीने से वीर्य-संबंधी दुर्बलता दूर होती है। इसके बीजों से बना चूर्ण सिरदर्द और स्नायु शूल में उपयोगी है। -
सुझाक (गोनोरिया) में लाभदायक:
इसके पत्तों का रस पिलाने से सुझाक रोग में राहत मिलती है। -
लकवा और गठिया रोग में:
इसके पंचांग (पूरे पौधे) को गर्म पानी में उबालकर उसका बाफारा देने से लकवा और गठिया में लाभ होता है। -
सिरदर्द में:
पत्तों के रस को ललाट और कनपटियों पर लगाने से सिरदर्द मिटता है। -
स्नायु शूल में:
इसके बीजों को फांकने से स्नायु शूल (नर्व पेन) मिटता है। -
घाव में:
सूखे पत्तों का चूर्ण घाव पर डालने से घाव के कीड़े निकल जाते हैं। -
अतिसार (डायरिया) में:
बीजों के चूर्ण की 5–7 माशे तक फंकी देने से अतिसार रुकता है।
🌸 मुखपाक या मुँह के छाले में प्रयोग
मुँह के छाले, मसूड़ों में पीव भरना या दुर्गंध होने पर इसके पत्तों को दिन में चार-पाँच बार चबाने या रस लगाने से अत्यधिक लाभ मिलता है।
🌿 निष्कर्ष
अरण्य तुलसी केवल एक जड़ी-बूटी नहीं बल्कि एक प्राकृतिक औषधालय है। यह वात, कफ, पाचन, हृदय, सिरदर्द और त्वचा से जुड़ी अनेक बीमारियों में लाभदायक सिद्ध होती है। नियमित और सही मात्रा में इसका सेवन शरीर को रोगमुक्त और ऊर्जावान बनाता है।



